शुक्रवार, 4 जून 2010

समेट लो इन हँसते हुए नाज़ुक पलों को

समेट लो इन हँसते हुए नाज़ुक पलों को,
ना जाने ये लम्हे का हो ना हो,
हो भी ये लम्हे तो क्या मालूम,
सामिल आपके पलों में हम हो ना हो|

विजय पटेल का ब्लॉग © 2011 BY VIJAY PATEL