सोमवार, 15 मार्च 2010

वो नादान बचपन ही कितना प्यारा था

कागज कि कश्ती थी ,
पानी का किनारा था,
खेलने कि मश्ती थी,
दिल ये आवारा था,
कहाँ से आ गए इस समझदारी कि दुनिया में,
वो नादान बचपन ही कितना प्यारा था|

विजय पटेल का ब्लॉग © 2011 BY VIJAY PATEL