शुक्रवार, 18 मार्च 2011

ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल

ऐ  मेरे  हमनशीं  चल  कहीं  और  चल,
इस  चमन  में  अब  अपना  गुज़ारा  नहीं ,
बात  होती  फूलों  तक  तो  सह  लेते  हम,
अब  तो  काँटों  पे  भी  हक  हमारा  नहीं |

विजय पटेल का ब्लॉग © 2011 BY VIJAY PATEL