रविवार, 19 दिसंबर 2010

कोई खुशियों की चाह में रोया

कोई खुशियों की चाह में रोया,
कोई दुखों कि पनाह में रोया,
अजीब सिलसिला है ये प्यार का,
कोई विश्वास के लिए रोया और कोई 
विश्वास कर के रोया|

विजय पटेल का ब्लॉग © 2011 BY VIJAY PATEL