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विजय पटेल का ब्लॉग
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मेरे अल्फाजों को झूठ मत समझना
लम्हे ये सुनहरे कल साथ हो ना हो
रेत पे लिखना तो आदत है हमारी
जब कोई ख्याल दिल से टकराता है दिल ना चाहकर...
क्यूँ किसी कि ख़ामोशी मुझे खामोश कर जाती है
कौन है जो मंजिल से दूर नहीं
फूल बनकर मुस्कुराना ज़िन्दगी है
किसी के दुःख का एहसास है हम
खफा है क्या मुझसे ??
ज़िन्दगी एक पल है
तुम क्या जानो क्या है तन्हाई
एक नज़र भी देखना गवारा नहीं उसे
तमन्ना जब किसी की नाकाम हो जाती है
कभी अँधेरा तो कभी शाम होगी
काफी वक़्त लगा हमें आप तक आने में
क्यू दिल के मेरे टुकड़े कर दिये
वो खुद नहीं जानते वो कितने प्यारे है
ना कोई किसी से दूर होता है
यु तो हर फूल में मधुरस नहीं होता
ये मेरी मोहब्बत का कुसूर है
ज़िक्र उनका ही आता है मेरे हर फ़साने में
दिल आपकी याद में उदास है
दिल की गलियों में ज़िन्दगी लौट आएगी
निकल आये है आंसू रोने से पहले
मेरे ब्लॉग का नया टेम्पलेट
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गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010
कौन है जो मंजिल से दूर नहीं
प्रस्तुतकर्ता बेनामी
कौन है जो मंजिल से दूर नहीं,
कौन है जो ज़िन्दगी से मजबूर नहीं,
गुनाह तो सभी करते है,
हमारी नज़र में तो खुदा भी बेक़सूर नहीं|
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