मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

मेरे दोस्त

वह नदिया नहीं थी,
आंसू थे मेरे,
जिस पर मेरे दोस्त कश्ती चलाते रहे|
मंजिल मिले उन्हें,
यह चाहत थी मेरी,
इसीलिए हम आंसू बहते रहे|

विजय पटेल का ब्लॉग © 2011 BY VIJAY PATEL