मंगलवार, 16 नवंबर 2010

फरेब था हसीं में,आशिक़ी समझ बैठे

फरेब था हसीं में,आशिक़ी समझ बैठे,
मौत को ही ज़िन्दगी समझ बैठे,
यह मजाक था या बदनसीबी हमारी,
दो मीठी बातों को चाहत समझ बैठें|

विजय पटेल का ब्लॉग © 2011 BY VIJAY PATEL