इस कदर हमारी चाहत का इम्तहान न लीजिये,
क्यों हो खफा बयान तो कीजिये,
माफ किया दीजिये गर हो गई हो हमसे खता,
खामोश रहकर हमें सजा न दीजिये|
हवा के झोंको का हिसाब क्या रखना,
जो बीत जाये उसे याद क्या रखना,
बस यही सोचकर मुस्करा दिए हम,
कि अपनी उदासी से दुसरो को उदास क्या रखना|