इस कदर हमारी चाहत का इम्तहान न लीजिये,
क्यों हो खफा बयान तो कीजिये,
माफ किया दीजिये गर हो गई हो हमसे खता,
खामोश रहकर हमें सजा न दीजिये|पोस्ट प्रकाशित करें
हवा के झोंको का हिसाब क्या रखना,
जो बीत जाये उसे याद क्या रखना,
बस यही सोचकर मुस्करा दिए हम,
कि अपनी उदासी से दुसरो को उदास क्या रखना|
गुरुवार, 21 जनवरी 2010
shayari
प्रस्तुतकर्ता बेनामीलेबल: लव शायरी